हमारे बारे में
हमारे संस्थापक और हमारी प्रेरणा
स्व. श्री श्यामसुन्दर शर्मा जी
श्री श्यामसुंदर शर्मा का जन्म सन् 1934 में राजस्थान प्रदेश के 'कृष्णगढ़' शहर में हुआ था। आपने अपने जीवनकाल में राजकीय सेवा के विभिन्न पदों पर कार्य किया एवं आप राजस्थान रेल्वे पुलिस विभाग से सन् 1990 में सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के पश्चात् आपका अधिकतम समय धार्मिक कार्यों में ही व्यतीत होने लगा।
आपने 'निम्बार्क पीठाधीश्वर ''श्री श्रीजी'' महाराज' की कृपा और आज्ञा पाकर वानप्रस्थ आश्रम भी ग्रहण किया। इसके पश्चात् आप भिन्न-भिन्न देवालयों में जाकर निवास करते और उन देवालयों के जीर्णोद्धार हेतु आर्थिक सहायता भी प्रदान करते।
निर्धन व असहाय परिवारों की सहायता, उनके बालकों की उत्तम शिक्षा, उनके स्वास्थ्य का विचार आपके मन में हमेशा बना रहता तथा इन कार्यों की सेवा हेतु आपने मन ही मन विचार भी बना लिया था।
इन सबके चलते अंततोगत्वा वो समय भी आ गया, सन् 2021 में आपका देवलोकगमन हुआ।
हमारे बारे में
''दादी माँ भँवरी बाई आसोपा धर्मार्थ ट्रस्ट'' की स्थापना का प्रस्ताव दिनांक 19-12-2012 को श्री श्यामसुंदर शर्मा ने अपने शुभचिंतकों के समक्ष रखा था। सभी ने इस प्रस्ताव की बहुत सराहना की और इस कार्य में सहयोग करने का विश्वास भी दिलाया।
इसके पश्चात् सन् 2013 में राजस्थान सार्वजनिक प्रन्यास अधिनियम 1959 की धारा 19 के तहत दिनांक 28-03-2013 को देवस्थान विभाग द्वारा इस धर्मार्थ ट्रस्ट को पंजीकृत किया गया। (रजिस्ट्रेशन संख्या - 02/अजमेर/2013)
Currently, the head office of our Charitable Trust is S-12/236 Labor Colony, Pratap Nagar, Bhilwara.
संस्थापक जी की लेखनी
मेरे जीवन की एक अविश्वसनीय घटना और ट्रस्ट के उद्देश्य
मेरे जीवन में मैने दादी जी (माँ भँवरीबाई) के व्यवहार में धर्म से संबंधित आश्चर्य जनक अनेक प्रसंग देखे जिनमें से यह एक अद्भुत प्रसंग मैं आपको बतलाता हूँ! पूर्व काल की यह बात है, जब मैं ओर दादाजी (माँ भवँरी बाई ) गौ सेवा कर रहे थे, गौ सेवा करते हुए अकस्मात ही दादीजी (माँ भँवरीबाई) को सर्प दंश कर गया, यह प्रसंग देख मेरा हृदय बहुत तेज़ी से स्पंदन करने लगा एवं अत्यधिक तेजी से अश्रुधारा बहने लगी मेरे मन में एक भय का वातावरण बन गया स्वाभाविक सा था बाल्यकाल में ऐसा होना। किंतु जब मैंने अपनी भीगी हुई आँखों से दादीजी (माँ भँवरीबाई) की ओर देखा तो मेरा मन स्तब्ध हो गया। उनके साथ ऐसा प्रसंग घटा और वह क्रोधादि अश्रुधारा से दूर होकर कुछ औषधिरूप पत्तों का सेवन ओर भगवान के नाम का जप कर रहे थे ईश्वर से अपने उत्तम आरोग्य की प्रार्थना कर रहे थे । यह विलक्षण दृश्य देख मैं अत्यधिक संदेह में पड़ गया कि कौन भला इतनी भयावह (सर्प दंश) वाली पीड़ा होने पर पत्तों का सेवन कर प्रसन्न चित्त से ईश्वर से प्रार्थना करता होगा! इस प्रसंग पर मैंने पूछा कि आप यह क्या कर रहें हैं? आपको सर्प ने काटा है और आप पत्तों का सेवन करते हुए भगवान के नाम का जप कर रहे हैं, यह बात मैंने पूछी तो फिर दादीजी (माँ भँवरी बाई) ने पीड़ा दूर होने के पश्चात् जो मुझे कहा सच कहूँ तो मेरी विवेक रूपी आँखें खुल गयी, वह बोले कि तुलसी और कड़वे नीम के पत्तों का सेवन करने से विषयुक्त जीव के दंश का प्रभाव कम हो जाता है और प्रिय श्याम सुनो तुम्हें एक आयुर्वेदिक औषधि भी बतलाती हूँ। मिचाईकंद और मदनफल यह आयुर्वेदिक औषधि लेने से विषयुक्त प्रभाव अत्यंत प्रभावी से प्रभावी क्यों न हो यह औषधि हमारे शारीरिक विषयुक्त सभी दुःखों को समाप्त कर देती है एवं सबसे अधिक और महत्वपूर्ण बात यह है प्रिय श्याम की इन सब औषधियों का प्रयोग करते समय हमें ईश्वर से प्रार्थना करते रहनी चाहिए इसीलिए मुझे सर्प दंश करते ही तुलसी आदि औषधियों का सेवन कर भगवान महामृत्युंजय से प्रार्थना करने लगी।
इस प्रसंग ने मेरी विवेक बुद्धि को जागृत किया एवं कालांतर के पश्चात् जब मैं आर्थिक रूप से समर्थ होने लगा तभी से मेरे शुद्ध अन्तः करण में धार्मिकता से संबंधित कार्य करने का विचार आने लगा एवं धीरे-धीरे मेरी धर्मकार्यों को लेकर प्रवृत्ति बढ़ने लगी और दादीजी (माँ भवँरीबाई) वाले सर्प दंश आदि अनेक प्रसंगों को ध्यान में रखते हुए मेरे मन में दादीजी (माँ भँवरी बाई) के शुभ नाम से एक धर्मार्थ ट्रस्ट बनाने का संकल्प हुआ।
अपनी नौकरी का सम्पूर्ण काल बीत जाने के पश्चात् उस नौकरी से प्राप्त हुए अर्थ को अनर्थ न करते हुए धार्मिक कार्य से संबंधित कुछ करने का विचार बनाते रहा एवं कुछ कालांतर के बाद श्रीजी महाराज (सलेमाबाद) द्वारा वानप्रस्थ आश्रम की दीक्षा ग्रहण की, उसी के अंगभूत (दादीमाँ भँवरी बाई आसोपा धर्मार्थ ट्रस्ट) इस सुंदर नाम से मैंने ट्रस्ट बनाने का निर्णय किया।
अब मन में प्रश्न यह उठने लगा की मैं इस ट्रस्ट के द्वारा किस-किस की मदद कर सकता हूँ, उसी क्षण मेरे अन्तःकरण में दादीजी (माँ भँवरीबाई) की दिनचर्या से जीवनचर्या की ओर ध्यान केंद्रित किया तो उनके द्वारा बताए हुए कुछ मुख्य बिंदु मेरे स्मरण में आए जैसे :-
- 1. भगवान की पूजा पाठ करो।
- 2. कोई भूखा न सोये।
- 3. गरीब ब्राह्मणों की हमारे धर्म में प्रवृत्ति होवे।
- 4. ईश्वर सभी का स्वास्थ्य उत्तम रखें ।
- 5. कोई भी बालक अशिक्षित न रहे।
- 6. हम जितना हो सके गरीब (निर्धन) की मदद करें।
- 7. गौ मैय्या की सेवा करो।
- 8. मंदिर आदि का निर्माण हो या जीर्णोद्धार हो।
यह स्मरण आये दादीजी के जीवन के उद्देश्य मेरे अन्तःकरण को छू गये एवं मैंने इन सभी उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए ट्रस्ट के अंतर्गत निम्न उद्देश्य लिए:
धार्मिक कार्य
- • देवालयों की मरम्मत व निर्माण कार्य।
- • मांगलिक अवसरों पर अनुष्ठान व पूजा - पाठ संपन्न करवाना।
- • निर्धन व असहाय बालकों का यज्ञोपवीत संस्कार संपन्न करवाना।
- • गौशालाओं में आर्थिक सहायता प्रदान करना।
- • सापली बालाजी मंदिर कार्य - सापली बालाजी मंदिर में नगद राशी न देकर किसी वस्तु , सामान आदि ज़रूरतमंद कार्यों में सहायता प्रदान करना । इस उद्देश्य ( मंदिर जीर्णोद्धार ) के लिए जो राशी प्राप्त होगी उसकी 50 % राशी सापली बालाजी मंदिर में खर्च करनी होगी व शेष 50 % राशी अन्य देवालयों में खर्च की जाएगी।
शिक्षा क्षेत्र
- • निर्धन बालकों को पुस्तकें - कॉपियाँ , स्कूल यूनिफार्म व स्कूल फ़ीस उपलब्ध करवाना।
स्वास्थ्य क्षेत्र
- • निर्धन व्यक्तियों को दवाईयाँ उपलब्ध करवाना , शारीरिक जाँच करवाना व चिकित्सक की फीस उपलब्ध करवाना ।
निर्धन परिवारों की सहायता क्षेत्र
- • निर्धन व असहाय परिवारों को आवासीय सुविधा उपलब्ध करवाना।
- • कन्या के विवाह आदि उत्सवों में आर्थिक सहायता उपलब्ध करवाना।
विविध क्षेत्र
- • ट्रस्ट के उपरोक्त उद्देश्यों के सुसंगत , अन्य किसी कार्य को ट्रस्ट के बहुमत से निर्णय कर निश्चित कर सकेंगे।
ट्रस्ट के सदस्य
1 | श्रीमती पुष्पा जोशी | जयपुर |
2 | श्रीमती सुधा व्यास | उदयपुर |
3 | श्री प्रदीप कुमार शर्मा | किशनगढ़ |
4 | श्री राजेश कुमार शर्मा | भीलवाड़ा |
5 | श्री नितेश तिवाड़ी | सूरत |
6 | श्री भगवती प्रसाद त्रिपाठी | जयपुर |
7 | श्री चंद्रप्रकाश शर्मा | जयपुर |
8 | श्रीमती सविता रतावा | केकड़ी |
9 | श्रीमती गीता देवी | केकड़ी |
10 | श्री देवेश तिवाड़ी | किशनगढ़ |
11 | श्री प्रफुल्ल शर्मा | किशनगढ़ |
12 | श्री अक्षय शर्मा | भीलवाड़ा |
13 | श्री संजय शर्मा | अजमेर |
14 | श्री शैलेन्द्र त्रिवेदी | जयपुर |
15 | श्री अनुभव शर्मा | जयपुर |
16 | श्री राजेंद्र तिवाड़ी | जयपुर |
17 | श्री देवांश शर्मा | किशनगढ़ |
18 | श्रीमती प्राची व्यास | जयपुर |
19 | श्री प्रदीप मेहता | सिडनी,ऑस्ट्रेलिया |